नई दिल्ली. सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (Scheduled Caste) और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribe) को पदोन्नति में आरक्षण (Reservation in Promotion) देने के लिए कोई मानदंड तय करने से सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी (SC/ST Reservation in Promotion) के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं. अदालत ने कहा कि वह एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए कोई मानदंड तय नहीं कर सकती और यह राज्यों को करना होगा.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा है कि नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) मामले में संविधान पीठ के फैसले के बाद शीर्ष अदालत कोई नया पैमाना नहीं बना सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण (SC/ST Reservation in Promotion) से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना ज़रूरी है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि प्रतिनिधित्व का एक तय अवधि में मूल्यांकन किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवधि क्या होगी, इसे केंद्र सरकार तय करे. केंद्र/राज्यों से जुड़े आरक्षण के मामलों में स्पष्टता पर 24 फरवरी से सुनवाई शुरू होगी.
जस्टिस एल नागेश्वर राव (Justice L Nageswara Rao), जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) और जस्टिस बी आर गवई (Justice B R Gavai) की पीठ ने यह फैसला दिया.
जानें, क्या था नागराज केस (Nagraj Case)
2006 में आए नागराज से संबंधित वाद में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा एकत्र किया जाएगा. ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होगा. सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी. सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश दिया था कि ‘राज्य एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है. हालांकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है.’