पूना पैक्ट (Poona Pact) या पूना समझौता (Poona Agreement), इसके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं और इससे भी वाकिफ हैं कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के अनशन करने के चलते ही डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) को समझौते के अन्तर्गत दलितों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को वापस लेना पड़ा. बाबा साहब यहां भी दलितों की अनदेखी से काफी व्यथित थे.
डॉ. आंबेडकर ने साल 1955 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में विस्तार से बताया था. उन्होंने गांधी के अनशन करने की वजह से दलितों के लिए मांगे जा रहे अधिकारों में कमी होने के प्रति अपनी नाराज़गी जाहिर की थी.
मैं गांधी को बेहतर जानता हूं, क्योंकि उन्होंने मेरे सामने अपनी असलियत उजागर कर दी- डॉ. आंबेडकर
बाबा साहब गांधी से हुई बातचीत को लेकर इस इंटरव्यू में कहते हैं, उन्होंने तोल-मोल किया. मैंने कुछ नहीं कहा. बाबा साहब ने बताया कि उन्होंने महात्मा गांधी से कहा, मैं आपकी ज़िंदगी बचाने को तैयार हूं, बशर्ते आप अड़ियल मत बनें, लेकिन मैं अपने लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करके आपकी ज़िंदगी बचाने नहीं जा रहा. आप देख सकते हैं कि इसके लिए मैंने कितना परिश्रम किया. मैं इस बात को अच्छी तरह जानता हूं. मैं आपकी सनक के लिए अपने लोगों के हितों का बलिदान नहीं करने जा रहा हूं. ये सिर्फ़ उनकी सनक थी. ये कैसे हो सकता है कि जिस सामान्य चुनाव से स्थितियां बदलने की बात की जा रही है, वो स्थितियां न बदल पाए?
इसको लेकर बीबीसी संवाददाता ने डॉ. आंबेडकर से आगे पूछा, तो इसपर उन्होंने (महात्मा गांधी) ने क्या कहा?
इसके जवाब में डॉ. आंबेडकर कहते हैं, ‘ओह… वो कुछ भी नहीं कह सके. उन्हें अनुसूचित जाति को लेकर भारी डर था कि वो सिख और मुस्लिमों की तरह आज़ाद निकाय बन जाएंगे और हिंदुओं को इन तीन समुदायों के समूह से लड़ना पड़ेगा. ये उनके दिमाग़ में था और वो हिंदुओं को दोस्तों के बिना छोड़ना नहीं चाहते थे.