नई दिल्ली/चेन्नई : 22 साल की उम्र में विपिन पी वीटिल (Vipin p veetil) ने इरास्मस मुंडस स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति पर पूरे यूरोप की यात्रा की. 31 साल की उम्र में उन्होंने जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय, वर्जीनिया से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की और 33 वर्ष की आयु तक वह पेरिस में सोरबोन विश्वविद्यालय (Sorbonne University) में पोस्ट डॉक्टरेट फेलो थे.
अपने प्रभावशाली एकेडमिक ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद वीटिल ने 2019 में आईआईटी-मद्रास (IIT Madras) में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में शामिल होने के एक महीने के भीतर सबसे कठिन प्रश्न का सामना किया. वह था – “आपकी जाति क्या है?”
Vipin p veetil याद करते हैं कि उनसे यह सवाल अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने पूछा था, जिन्होंने 10 साल से अधिक समय तक आईआईटी-एम में पढ़ाया था.
यह और इस तरह की अन्य घटनाओं के कारण IIT-मद्रास के संकाय सदस्य ने 1 जुलाई 2021 को इस्तीफा दे दिया. The Quint को दिए गए इंटरव्यू में जातिगत भेदभाव (Caste Discrimination) का आरोप लगाते हुए वीटिल ने बताया, “IIT-M में, आप अपनी जाति को तो भूल सकते हैं, लेकिन अन्य नहीं. वे जानेंगे या जानना चाहेंगे.”
फैकल्टी मेंबर का जातिगत भेदभाव को लेकर आरोप ऐसे समय में आया है जब केंद्र देश भर में मेडिकल और डेंटल कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने की योजना बना रहा है.
वीटिल ने अब अपना इस्तीफा वापस ले लिया है और जुलाई में दर्ज कराई गई शिकायत के लिए वह आईआईटी-मद्रास वापस आ गए हैं. केरल के रहने वाले 36 वर्षीय सहायक प्रोफेसर मनियानी (ओबीसी) जाति से हैं. वीटिल ने नई दिल्ली में ओबीसी आयोग (OBC Commission) के साथ एक नई शिकायत दर्ज की है, जिसमें संस्था से जाति भेदभाव के कथित मामले की जांच करने का अनुरोध किया गया है.
दो पेज की शिकायत संभवत: अपनी तरह की पहली हो सकती है, क्योंकि संस्थान के एक फैकल्टी सदस्य ने ओबीसी आयोग के समक्ष जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है.
इससे पहले 2015 में आईआईटी-एम के छात्रों के एक वर्ग ने संस्थान प्रबंधन पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था, जब प्रशासन ने अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल (APSC) की मान्यता रद्द कर दी थी. APSC अब IIT-मद्रास में एक स्वतंत्र छात्र निकाय के रूप में कार्य करता है.
अब वीटिल एक लंबी कानूनी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं, आईआईटी-मद्रास में उनकी यात्रा के बारे में जो बात सामने आती है, वह यह है कि जाति उन लोगों को परेशान करती रहती है, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े दलित-बहुजन समुदायों से आते हैं, भले ही वे अकादमिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हों.