SC/ST Reservation : अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण (Scheduled Caste & Scheduled Tribes Reservation) के प्रावधान के संबंध में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फ़ैसले को लेकर इस वर्ग के नेताओं में चिंता उभरी है. इसकी शुरुआत बिहार (Bihar) से हुई है, जहां सर्वदलीय बैठक के जरिये सभी एससी/एसटी विधायक एकजुट हुए हैं और उन्होंने आरक्षण बचाओ मोर्चा के तहत देशव्यापी आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया है. अब इस आंदोलन की रणनीति दिल्ली में होने वाली अहम सर्वदलीय बैठक में तय होगी, जिमसें देश भर के इस वर्ग के विधायकों को साथ लाने का काम किया जाएगा.
दरअसल, इस मोर्चे की मांग है कि एससी/एसटी आरक्षण संबंधी सभी कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची (9th schedule of constitution) में शामिल किया जाए, जिससे भविष्य में इस वर्ग के लोगों को मिल रहे आरक्षण के लाभ को सुनिश्चित रखा जा सके. साथ ही मोर्चे की मांगों में न्यायिक सेवा आयोग का गठन करने, सरकारी सेवाओं में आरक्षित पदों के बैकलॉग समाप्त करने, आरक्षित वर्ग के लोगों को निजी क्षेत्र की सेवाओं में आरक्षण दिए जाने और प्रोन्नति में आरक्षण जारी रखना शामिल हैं.
तो अनुसूचित जाति, जनजाति आरक्षण को संविधान की नौंवी अनुसूची में रखे जाने से इस वर्ग को क्या लाभ मिलेगा, यह जानना बेहद जरूरी है. अगर हम संविधान के प्रावधानों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि संविधान के आर्टिकल 31 बी के अनुसार, जिन कानूनों को 9वीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है, तो ऐसे कानूनों को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वे संविधान के बाकी अधिनियमों, विनियम या उपबंधों में किसी से असंगत है या संविधान के बाकी प्रावधानों में दिए गए अधिकारों को छीनता है. 9वीं अनुसूची में रखे गए कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे में न आकर उपर्युक्त विधानमंडल की शक्ति के अधीन होते हैं.
यानि साधारण भाषा में समझें तो 9वीं अनुसूची में रखे गए कानूनों को न्यायालय के द्वारा निरस्त नहीं किया जा सकता और ऐसे कानूनों को निरस्त या संशोधन करने का अधिकार केवल विधानमंडल के पास होगा.
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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर ताजा टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के बीच ही आरक्षण समीक्षा की बात कर दी थी.
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को खारिज करते हुए कहा था कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता और अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों/राज्यों में विद्यालयों में 100 प्रतिशत लोग इन्ही समुदायों के नहीं रखे जा सकते हैं.
इतना ही नहीं, कोर्ट ने ये भी कहा है कि ‘एससी/एसटी वर्ग के संपन्न लोग अपने समुदाय के बाकी लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलने दे रहे हैं, इसलिए आरक्षण प्राप्त करने वाली जातियों (सूची) की समीक्षा व संशोधन करना चाहिए.
खास बात यह भी है कि वर्ष 2018 में संविधान पीठ द्वारा जरनैल सिंह केस में की गईं टिप्पणियां अभी फैसले से हटी भी नहीं हैं कि अब दूसरी संविधान पीठ ने यही टिप्पणियां फिर से कर दी हैं. लिहाजा, इससे सरकार के लिए एक बार फिर से मुश्किल खड़ी हो गई है.
बीच आरक्षण (Reservation) से छेड़छाड़ की कोशिश की बात कहने वाले बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिखा था. श्याम रजक अखिल भारतीय धोबी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और नीतीश कुमार सरकार में उद्योग मंत्री.
बीते सोमवार को पीएम मोदी को दूसरी बार खत लिखकर फिर अनुरोध किया था कि वह आरक्षण की व्यवस्था को अक्षुण्ण रखने के मसले पर आश्वासन से संबंधित बयान दें. उन्होंने इसके पहले भी पीएम मोदी को खत लिख कहा था कि कुछ संस्थाएं देश में आरक्षण के साथ छेड़छाड़ की कोशिश कर रही हैं. इससे पहले प्रधानमंत्री को पहले भी पत्र लिखकर आग्रह गया किया था कि इस बारे में एक वक्तव्य देकर वह इस वर्ग के लोगों के बीच फैली निराशा को दूर करें. प्रधानमंत्री के वक्तव्य से लोग आश्वस्त होंगे.
कोई जवाब न मिलने के बाद आरक्षण (Reservation) बचाने को एक बार फिर बिहार (Bihar) में एससी-एसटी (SC/ST) विधायकों की बैठक हुई, जिसमें सभी पार्टियों के MLA एक मंच पर जुटे. बैठक गुरुवार को पूर्व CM जीतनराम मांझी के आवास पर हुई. इसमें कहा गया कि आरक्षण बचाओ मोर्चा अब देशव्यापी आकार लेगा. जल्द दिल्ली में बैठक होगी.
बैठक में कहा गया है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के देशभर के विधायकों को मोर्चा से जोड़ने के लिए जल्द ही दिल्ली में बैठक आयोजित की जाएगी.
बिहार के उद्योग मंत्री तथा समन्वय समिति के सदस्य श्याम रजक (Shyam Rajak) ने बताया कि एससी-एसटी आरक्षण (SC/ST Reservation) बचाओ मोर्चा की देशव्यापी बैठक जुलाई महीने के आखिरी हफ्ते में हो सकती है.
रजक के अनुसार, दूसरे राज्यों के विधायकों से भी संपर्क साधा जा रहा है. इसका मकसद आरक्षण की लड़ाई को राष्ट्रीय स्वरूप देना है. साथ ही बैठक में तय किया गया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने से पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया जाएगा.
रजक ने कहा कि हम लोगों की साफ समझ है कि संविधान से हासिल इस वर्ग के आरक्षण के अधिकार को धीरे-धीरे समाप्त करने की कोशिश हो रही है. संगठित संघर्ष के बल पर इस कोशिश को रोका जाएगा. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगा गया था, लेकिन हमें वक्त नहीं मिला है. हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र मिल गया है.
(एडवोकेट अमित साहनी जनहित मुद्दों, दलितों एवं वंचित वर्ग के कानूनी अधिकारों को लेकर सक्रिय हैं और दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में दर्जनों जनहित याचिकाएं डाल उनके हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं…)