त्याग और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण रहे मान्यवर कांशीराम (Manyavar Kanshi Ram) के जीवन की यूं तो कई बातें हैं, जो हम सभी को प्रेरित करती हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी किस्से हैं, जो बहुजन मिशन (Bahujan Mission) के प्रति उनके विशुद्ध समर्पण को दर्शाते हैं. सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर वह इस पथ पर ऐसे आगे बढ़े कि इसे पाने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ समर्पित कर दिया. यहां तक अपना परिवार, सगे-संबंधी सभी.
Kanshi Ram Ke Anmol Vichar: मान्यवर कांशीराम के अनमोल विचार, पार्ट- 4
साहेब कांशीराम (Sahab Kanshi Ram) की माता बिशन कौर (Mata Bihsan Kaur) ने अपनी यादों के आधार पर बताया था कि पूना जाने के बाद उनके पुत्र कांशीराम (Kanshi Ram) में काफी बदलाव आए. वह कभी घर आते तो गुमसुम बैठे रहते. खेतों में जाकर किताबें पढ़ते रहते थे. वह बताती हैं कि आखिरी बार जब कांशीराम पूना गए तो काफी समय तक उनका कोई पत्र नहीं आया. वह इससे परेशान हो उठीं.
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माता बिशन कौर (Mata Bihsan Kaur) ने उनके फुफुरे भाई को हाल पता करने को वहां भेजा. फुफुरे भाई ने जब कांशीराम से घर आने को कहा तो मान्यवर कांशीराम ने जवाब दिया- घर वालों को बता देना अब मैं घर कभी नहीं आऊंगा. मुझे अपने दबे-कुचले लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़नी है.
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बहुजन मिशन (Bahujan Mission) के सच्चे सिपाही कांशीराम (Manyavar Kanshi Ram) ने एक 24 पन्नों का पत्र भेजकर घरवालों को अपने इस फैसले से भी अवगत कराया. इस पत्र में उन्होंने साफ किया था कि वह कभी शादी नहीं करेंगे. कभी घर नहीं आएंगे. कभी कोई सम्पत्ति नहीं बनाएंगे. किसी भी सामाजिक समारोह जैसे विवाहोत्सव, मृत्युभोज आदि में सम्मिलित नहीं होएंगे और आगे से कोई नौकरी नहीं करेंगे. मान्यवर कांशीराम जीवन पर्यन्त अपने उक्त फैसले पर कायम रहे. वे अपने पिता की मृत्यु पर भी अपने घर नहीं गए थे.
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जब पहली बार मान्यवर कांशीराम ने संसद में प्रवेश किया, हर कोई सीट से खड़ा हो गया था…
Kanshiram ke Vichar: कांशीराम के अनमोल विचार-कथन, पार्ट-3