इस लेख में मान्यवर कांशीराम (Manyavar Kanshiram) के विचारों के जरिए जानेंगे कि चमचों की जरूरत क्या होती है और इन्हें किस तरह तैयार कर खड़ा किया जाता है. दरअसल, कांशीराम साहेब (Manyavar Saheb Shri Kanshiram) कहते हैं कि सच्चे, खरे योद्धा का विरोध करने के लिए चमचों को बनाया जाता है. इन चमचों को कांशीराम (Kanshi Ram) औजार, दलाल, पिट्ठू कहा करते थे. उन्होंने ‘चमचा युग’ (Chamcha Yug) में लिखा, शुरुआत में उपेक्षित रहे दलित वर्गों (Dalit Varg) का नेतृत्व जब बाद में सशक्त और प्रबल हो गया तो उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकी. तब ऊंची जातियों के हिंदुओं के यह आवश्यकता महसूस हुई कि वह दलित वर्गों (Depressed Classes) के सच्चे नेताओं के खिलाफ चमचे खड़े करें. आइये पढ़ते हैं मान्यवर कांशीराम द्वारा लिखे गए अनमोल विचार (Kanshi Ram Ke Anmol Vichar)…
कार्यकर्ता को चमचा समझने की भूल तो नहीं ही करनी चाहिए : मान्यवर कांशीराम
औजार, दलाल, पिट्ठू अथवा चमचा बनाया जाता है सच्चे, खरे योद्धा का विरोध करने के लिए. जब खरे और सच्चे योद्धा होते हैं, चमचों की मांग तभी होती है. जब कोई लड़ाई, कोई संघर्ष और किसी योद्धा की तरफ से कोई खतरा नहीं होता तो चमचों की जरूरत नहीं होती. उनकी मांग नहीं होती, जैसा कि हम देख चुके हैं. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में दलित वर्ग लगभग समूचे भारत में छुआछूत और अन्याय पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को तैयार हो गए थे. प्रारंभ में उनकी उपेक्षा की गई, किंतु बाद में जब दलित वर्गों का नेतृत्व सशक्त और प्रबल हो गया तो उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकी. इस मुकाम पर आकर ऊंची जातियों के हिंदुओं के यह महसूस हुई कि वह दलित वर्गों के सच्चे नेताओं के खिलाफ चमचे खड़े करें.
भूखे-प्यासे और साइकिल भी पंचर… मान्यवर कांशीराम का 5 पैसे वाला ‘प्रेरक किस्सा’
गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) के दौरान डॉ. बी आर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) ने अत्यंत सफलतापूर्वक दलित वर्गों के लिए संघर्ष किया. उस समय तक गांधी जी और उनकी कांग्रेस इस भुलावे में थे कि दलित वर्गों के पास ऐसा कोई सच्चा नेता नहीं था जो उनके लिए लड़ सके. गोलमेज सम्मेलनों के दौरान 19331 के आसपास गांधी जी और उनकी कांग्रेस ने इंच दर इंच अंतिम पल तक दलित वर्गों के राजनीतिक संरक्षण की एक-एक मांग का विरोध किया. किंतु यह डॉक्टर आंबेडकर (Dr. Ambedkar) के नेतृत्व का बूता था कि उन्होंने दलित वर्गों की न्यायोचित मांगों को मनवा लिया. गांधी जी (Gandhi Ji) और कांग्रेस (Congress) के तमाम विरोध के बावजूद 17 अगस्त 1932 को घोषित प्रधानमंत्री के पंचाट में दलित वर्गों को पृथक निर्वाचक मंडल की स्वीकृति दे दी गई. 1930 से 1932 तक की अवधि में गांधीजी और कांग्रेस को पहली बार चमचों की जरूरत महसूस हुई.
जब पहली बार मान्यवर कांशीराम ने संसद में प्रवेश किया, हर कोई सीट से खड़ा हो गया था…
Kanshi Ram ke Anmol Vichar: कांशीराम के अनमोल विचार-कथन, पार्ट-3
स्त्रोत : चमचा युग (The Chamcha Age)
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