चंडीगढ़. पंजाब में विधानसभा चुनावों से पहले दलित राजनीति (Punjab Assembly Elections 2022) गर्मा गई है. वहीं, अनुसूचित जातियों (SC) को लेकर राज्य आयोग (State Commission) ने आरक्षण की दोबारा गणना किए जाने की मांग की है. राज्य आयोग ने सरकार को अपनी सिफारिशों में जनसंख्या के आधार पर आरक्षण प्रतिशत की गणना किए जाने की अपील की है.
अनुसूचित आयोग की प्रमुख तेजिंदर कौर ने दावा किया कि पिछले 47 सालों में राज्य में किसी तरह के आरक्षण की समीक्षा नहीं गई है.
उन्होंने कहा है कि इससे पहले भी राज्य में समय-समय पर जनसंख्या का आकलन कर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया गया है. उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने 19 अक्टूबर 1949 में राज्य में 15 फीसदी आरक्षण तय कर दिया था. बाद में 19 अगस्त 1952 में इसे बढ़ाकर 19 फीसदी किया गया और 7 सितंबर 1963 में यह आंकड़ा 20 फीसदी पर पहुंचा. आखिरी बार आरक्षण 6 जून 1974 को बढ़ा था.
क्या कहा था अमरिंदर सिंह ने?
न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा पर छपी प्रकाशित खबर के अनुसार, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा था कि उनकी सरकार सभी योजनाओं के तहत कम से कम 30 प्रतिशत निधि राज्य के अनुसूचित जाति के लोगों के कल्याण पर खर्च करेगी.
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भारतीय संविधान के निर्माता बी आर आंबेडकर की 130 वीं जयंती पर एक डिजिटल राज्य स्तरीय कार्यक्रम में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सिंह ने सभी विभागों में अनुसूचित जाति से जुड़े खाली पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरने की घोषणा की और इस श्रेणी के विद्यार्थियों के लिए कक्षा दसवीं के बाद की विदेश अध्येता योजना की संभावना पता लगाने का वादा किया.