नई दिल्ली/देहरादून : उत्तराखंड अनुसूचित जनजाति आयोग (Uttarakhand Scheduled Tribes Commission) की हालिया रिपोर्ट राज्य में आदिवासी समुदायों पर होते अत्याचारों (Atrocities on Tribal Communities) का चिंताजनक आंकड़ा सामने लाई है. आयोग की 2020-21 के रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में आदिवासी समुदाय (Tribal Community in Uttarakhand) के खिलाफ अत्याचार/उत्पीड़न की सबसे ज्यादा घटनाएं उधम सिंह नगर जिले (Udham Singh Nagar District) में दर्ज की गईं. जिले में 54 शिकायतें दर्ज की गई. इसके बाद राजधानी देहरादून (Dehradun) सबसे अधिक 30 मामले दर्ज हुए. बता दें कि इससे पहले 2019-20 में देहरादून 62 मामलों के साथ सबसे ऊपर था, जबकि उधम सिंह नगर (56) के साथ दूसरे स्थान पर था.
2020-21 में रिपोर्ट किए गए कुल मामले 103 थे, जो पिछले दो सालों की तुलना में कम रहे. 2019-20 में राज्य में 140 और 2018-19 में 160 मामले आदिवासी आयोग (ST Commission) में दर्ज किए गए थे. रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016-17 से 2020-21 तक कुल 509 मामले आयोग को रिपोर्ट किए गए. इनमें से 250 मामले लंबित हैं.
TOI की रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 से 2020-21 तक उधम सिंह नगर जिले से आदिवासी समुदाय के खिलाफ अत्याचार (Atrocities against tribal community in Udham Singh Nagar district) के कुल 212 मामले सामने आए, जबकि देहरादून में 150, पिथौरागढ़ से 69, हरिद्वार से 21 और पौड़ी से 17 मामले सामने आए.
वहीं, रुद्रप्रयाग से 2016-17 से 2020-21 तक एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया. बागेश्वर, अल्मोड़ा में एक-एक और टिहरी, उत्तरकाशी और चंपावत में दो-दो मामले दर्ज किए गए.
2020-21 में 5 जिलों – रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, चंपावत, बागेश्वर और पौड़ी में आदिवासी समुदाय के खिलाफ अत्याचार का एक भी मामला सामने नहीं आया.
उत्तराखंड अनुसूचित जनजाति आयोग (Uttarakhand Scheduled Tribes Commission) के अध्यक्ष मूरत राम शर्मा ने TOI से कहा, हमें सबसे अधिक शिकायतें जमीन से संबंधित मिली. यहां गैर-आदिवासियों (scheduled tribes atrocities) द्वारा औने-पौने दामों पर आदिवासी भूमि खरीदे जाने का मुद्दा प्रमुख है. यह गलत प्रथा है, क्योंकि न तो आदिवासियों और न ही गैर-आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए निर्दिष्ट भूमि खरीदने की अनुमति है. उधम सिंह नगर यह समस्या आम है.
मूरत राम शर्मा ने आगे कहा कि हमारे पास शिकायतें ज्यादातर मुआवजे को लेकर होती हैं. आदिवासियों को अपनी जमीन पर राजमार्ग बनाने के लिए सरकार द्वारा बकाया राशि का भुगतान न करने का अफसोस है. फिर कुछ ऐसे भी हैं जो कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं और बैंकों द्वारा अपनी जमीन नीलाम करने की शिकायत कर रहे हैं.