नई दिल्ली. आजादी के बाद दलित राजनीति (Dalit Politics) के सक्रिय होने का श्रेय किसी को जाता है तो वो हैं मान्यवर कांशीराम. बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम (Kanshi Ram) ने भारतीय राजनीति और दलित (Dalit) समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाले की भूमिका निभाई है.
बाबा साहेब बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) ने दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष कर संविधान में उन्हें उचित स्थान दिया, लेकिन कांशीराम के प्रयासों और राजनीतिक सोच ने इसे धरातल पर पूरी तरह से उतारा. आइए जानते हैं कांशीराम (Kanshi Ram) के जीवन की वो खास बातें, जिसने उन्हें दलित राजनीति (Dalit Politics) का चेहरा बना दिया.
-संविधान के निर्माण के साथ ही आरक्षण के लिए सरकारी सेवा में दलित कर्मचारियों के लिए एक संस्था हुआ करती थी. कांशीराम ने दलित चेहरों को भी बराबर हक मिले इसलिए आंबेडकर जयंती के दिन अवकाश घोषित करने की मांग उठाई.
-1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की, ताकि दलित चेहरों को सिर्फ सरकारी नौकरी में ही नहीं बल्कि राजनीति में एक भी एक स्थान मिल सके.
-बसपा की स्थापना करने के बाद कांशीराम ने कहा था आंबेडकर किताबें इकट्ठा करते थे, लेकिन मैं लोगों को इकट्ठा करता हूं.
-कांशीराम के प्रयासों से बहुत कम समय में बसपा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी. उत्तर भारत की राजनीति में गैर-ब्राह्मणवाद की शब्दावली बीएसपी ही प्रचलन में लाई.
-कांशीराम सिर्फ दलित राजनीति का चेहरा ही नहीं बने, बल्कि देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री मायावती के मार्गदर्शक बने. मायावती को राजनीति में लाने और उन्हें एक राजनेता के तौर पर उभारने में कांशीराम का अहम योगदान माना जाता है.