बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) की पहली चेतावनी लोकतंत्र में ‘विरोध के तरीकों’ (Methods of protest in democracy) के बारे में थी. “व्यक्ति को सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह के तरीकों को छोड़ना चाहिए,”
संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar last speech to the Constituent Assembly) की दूसरी चेतावनी, किसी राजनीतिक व्यक्ति या सत्ता के आगे लोगों/नागरिकों के नतमस्तक हो जाने की प्रवृति को लेकर थी. “धर्म में भक्ति, आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकती है, लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक की पूजा, पतन और अंततः तानाशाही के लिए एक निश्चित मार्ग सुनिश्चित करती है,”
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उनकी अंतिम और तीसरी चेतावनी थी कि भारतीयों को केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतोष प्राप्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक लोकतंत्र प्राप्त कर लेने भर से भारतीय समाज में अंतर्निहित असमानता खत्म नहीं हो जाती है. “अगर हम लंबे समय तक इससे (समानता) वंचित रहे, तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डाल लेंगे,”
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डॉ. आंबेडकर अपने भाषण के दौरान इस बात को लेकर काफी सचेत थे, कि यदि हम न केवल रूप में, बल्कि वास्तव में संविधान के जरिये लोकतंत्र (democracy through constitution) को बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें इसके लिए क्या करना होगा.
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