
मैं गांधी को बेहतर जानता हूं, क्योंकि उन्होंने मेरे सामने अपनी असलियत उजागर कर दी- डॉ. आंबेडकर
डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) और गांधी के संबंध कैसे थे? इस पर तमाम कहा और सुना गया है और पर लंबी बहस भी हई हैं. लेकिन वर्ष 1955 में बाबा साहब ने बीबीसी को एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के साथ अपने संबंधों और मतभेदों पर लंबी बातचीत की थी.
बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने कहा था, एक मित्र के माध्यम से साल 1929 में मैं पहली बार गांधी से मिला था. एक कॉमन दोस्त ने गांधी को मुझसे मिलने के लिए कहा. इसके बाद गांधी ने मुझे ख़त लिखा कि वो मुझसे मिलना चाहते हैं. इसलिए मैं उनके पास गया. उनसे मिला. ये गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने जाने से ठीक पहले की बात है.
डॉ आंबेडकर ने कहा कि, ‘फिर वह दूसरे दौर के गोलमेज़ सम्मेलन में आए. पहले दौर के सम्मेलन के लिए नहीं आए थे. वो वहां 5-6 महीने के लिए रूके. उस दौरान मैंने उनसे मुलाक़ात की. दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन (Round Table Conference) में भी उनसे मुलाक़ात हुई. पूना समझौते (Pona Agreement) पर हस्ताक्षर करने के बाद भी उन्होंने मुझसे मिलने को कहा. लिहाज़ा मैं उनसे मिलने के लिए गया.’
बाबा साहब आगे कहते हैं, ‘वो जेल में थे. यही वो वक़्त था जब मैंने गांधी से मुलाक़ात की. लेकिन मैं हमेशा कहता रहा हूं कि तब मैं एक प्रतिद्वंद्वी की हैसियत से गांधी से मिला. मुझे लगता है कि मैं उन्हें अन्य लोगों की तुलना में बेहतर जानता हूं. क्योंकि उन्होंने मेरे सामने अपनी असलियत उजागर कर दी. मैं उस शख़्स के दिल में झांक सकता था.’
डॉ. आंबेडकर ने कहा, आमतौर पर भक्तों के रूप में उनके पास जाने पर कुछ नहीं दिखता, सिवाय बाहरी आवरण के, जो उन्होंने महात्मा के रूप में ओढ़ रखा था. लेकिन मैंने उन्हें एक इंसान की हैसियत से देखा, उनके अंदर के नंगे आदमी को देखा, लिहाज़ा मैं कह सकता हूं कि जो लोग उनसे जुड़े थे, मैं उनके मुक़ाबले बेहतर समझता हूं.
[…] पूना पैक्ट (Poona Pact) या पूना समझौता (Poona Agreement…, इसके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं और इससे भी वाकिफ हैं कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के अनशन करने के चलते ही डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) को समझौते के अन्तर्गत दलितों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को वापस लेना पड़ा. बाबा साहब यहां भी दलितों की अनदेखी से काफी व्यथित थे. […]