देश में आज भी छूआछूत जैसी कुरीतियां समाज में बनी हुई है. देश के कई हिस्सों से रोज़ाना दलित उत्पीड़न (Dalit Atrocities) की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें पिछड़े समुदायों के साथ अमानवीय, हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. भारतीय संविधान (Indian Constitution) में छूआछूत को बड़ा अपराध घोषित किया गया है. ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बाबासाहेब डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) ने शोषित, वंचितों को उनके अधिकार दिलाने और छूआछूत जैसी कुरीति को दूर करने के लिए इस बात पर जोर दिया था, क्योंकि दलित समुदाय से होने और बचपन से इसका दंश झेलने के कारण वह भली भांति जानते थे कि अस्पृश्यता के कारण दलितों को क्या क्या दर्द झेलना पड़ता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Article 17 of Indian Constitution in Hindi) अस्पृश्यता का अंत (Abolition of Untouchability) करता है. संविधान के इस आर्टिकल के जरिये स्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध है. इसके अनुसार, ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा.
जानें क्या है अनुच्छेद 17 का स्पष्टीकरण (Explanation to Article 17)
बिना किसी वजह किसी जाति के व्यक्ति के साथ सिर्फ उस जाति मे जन्म लेने की वजह से उसको नीचा मानना, ऐसा सदियों से हमारे समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव, छूआछूत की निंदनीय प्रथा चली आ रही है, जिसे खत्म करने के लिए इस अनुच्छेद को संविधान में जगह दी गई.
अनुछेद-17 संविधान में लिखित सभी अधिकारों में सिर्फ एक मात्र निरपेक्ष अनुच्छेद (Absolute Article) है. यानि अस्पृश्यता का पालन किसी भी स्वरूप मे करना गैर संवैधानिक है.
इस अनुच्छेद का कोई अपवाद नही है. यानि किसी भी परिस्थिति मे इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है.
भारतीय संविधान में अस्पृश्यता रोकने के लिए अनुच्छेद 17 के साथ अनुच्छेद 15(2) के प्रावधान भी उपयोक्त है.
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आइये जानते हैं कि अस्पृश्यता यानि छूआछूत क्या है? (Know what is Untouchability)
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मैसूर उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में अस्पृश्यता के अर्थ को स्पष्ट किया है. न्यायालय ने कहा है कि “इस शब्द का शाब्दिक अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए. शाब्दिक अर्थ में व्यक्तियों को कई कारणों से अस्पृश्य माना जा सकता है; जैसे-जन्म, रोग, मृत्यु एवं अन्य कारणों से उत्पन्न अस्पृश्यता. इसका अर्थ उन सामाजिक कुरीतियों से समझना चाहिये जो भारतवर्ष में जाति-प्रथा (caste system) के सन्दर्भ में परम्परा से विकसित हुई हैं. अनुच्छेद 17 इसी सामाजिक बुराई का निवारण करता है जो जाति-प्रथा की देन है न कि शाब्दिक अस्पृश्यता का.”
न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियां और निर्देश से कुछ कार्यों को अस्पृश्यता का पालन माना जाएगा, जिसके लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है.
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अस्पृश्यता माने जाने वाले कार्यों के उदाहरण
(1) किसी व्यक्ति को किसी सामाजिक संस्था में जैसे अस्पताल, मेडिकल स्टोर, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश न देना.
(2) किसी व्यक्ति को सार्वजनिक उपासना के किसी स्थल (मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि) में उपासना या प्रार्थना करने से रोकना.
(3) किसी दुकान, रेस्टोरेंट, होटल या सार्वजनिक मनोरंजन के किसी स्थान पर जाने से रोक लगाना या किसी जलाशय, नल, जल के अन्य स्रोत, रास्ते, श्मशान या अन्य स्थान के संबंध में जहां सार्वजनिक रूप में सेवाएं प्रदान की जाती हैं, वहां की पाबंदी लगाना.
(4) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी (SC,ST,OBC) के किसी सदस्य का अस्पृश्यता के आधार पर अपमान करना
(5) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का उपदेश देना
(6) इतिहास, दर्शन या धर्म को आधार मानकर या किसी जाति प्रथा को मानकर अस्पृश्यता को सही बताना. (यानि धर्म ग्रंथ में जातिवाद लिखा है तो मैं उसका पालन कर रहा हूं, ऐसे नहीं चलेगा और उसे भी अपराध माना जाएगा)
अस्पृश्यता निषेध से संबंधित कानून
अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955, का नाम बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 कर दिया गया।
Case Law :
कर्नाटक राज्य बनाम अप्पा बालू इंगले, एआईआर 1993 एससी 1126
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(इस आर्टिकल के लेखक एडवोकेट अमित साहनी जनहित मुद्दों, दलितों एवं वंचित वर्ग के कानूनी अधिकारों को लेकर सक्रिय हैं और दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में दर्जनों जनहित याचिकाएं डाल उनके हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं…)
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