भोपाल : बिना सुरक्षा उपकरण सीवर टैंक में उतरे दो लोगों की मौत, अफसर बनना चाहता था मृतक युवक

Bhopal Two Sanitation workers died while cleaning Sewer without security equipment

पाल. मध्‍यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी में भोपाल (Bhopal) में 20 फीट गहरे सीवर की सफाई के दौरान दो लोग हादसे का शिकार हो गए. गुजरात की एक कंपनी के इंजीनियर दीपक सिंह और एक अन्य नाबालिग छात्र सीवर की जांच के ल‍िए उसमें उतरे थे, जिससे उनकी मौत (Two Sanitation workers died while cleaning the Sewer) हो गई. गंभीर बात यह है कि इस उनके पास सुरक्षा उपकरण भी नहीं थे, जबकि मनुअल स्‍केवेजिंग कानून (THE PROHIBITION OF EMPLOYMENT AS MANUAL SCAVENGERS AND THEIR REHABILITATION ACT, 2013) में इसका सख्‍त प्रावधान है कि बिना सुरक्षा एवं अन्‍य सहायक उपकरणों के किसी भी शख्‍स को गटर, सीवर आदि में उतारा नहीं जा सकता.

सरकार सीवर, सेप्टिक टैंक में सफाई करते लोगों की ‘अमानवीय मौत’ का आंकड़ा क्‍यों छिपा रही है?

सीवर सफाई का काम गुजरात की एक प्राइवेट कंपनी करा रही थी
भोपाल नगर निगम (Bhopal Municipal Corporation) के अंतर्गत जोन नंबर-1 के लाऊखेड़ी में एक निजी कंपनी सीवेज (Sewer Cleaning) का काम कर रही है. सीवेज लाइन अभी बंद है, लेकिन उसमें बारिश और घरों से निकलने वाला गंदा पानी भर गया. सोमवार को कंपनी के इंजीनियर दीपक सिंह और एक अन्य छात्र भारत जांच करने के लिए गए थे. ये दोनों काफी समय बाद तक बाहर नहीं निकले. इसके बाद उनकी तलाश शुरू की गई.

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दोपहर बाद मिले दोनों सफाई कर्मियों के शव
रिपोर्ट के मुताबिक, उनके काफी समय तक बाहर नहीं निकलने पर प्राइवेट कंपनी के अधिकारियों ने आनन-फानन में उनकी तलाश शुरू करवाई. काफी मशक्कत के बाद दोपहर बाद दोनों के शव निकाले गए. इस दौरान मौके पर इन दोनों लोगों के पास न तो कोई सफाई उपकरण थे और न ही उनके पास सुरक्षा के कोई उपकरण मौजूद थे.

दम घुटने की वजह से हुई मौत
रिपोर्ट कहती है कि दोनों जब बिना सुरक्षा उपकरण सीवर में उतरे थे, तो इतने गहरे सीवर में उतरने की वजह से दोनों को ऑक्सीजन की कमी हुई, जिससे उनका दम घुटने लगा और दोनों की मौत हो गई.

इंजीनियर के साथ जिस नाबालिग की मौत हुई वह अफसर बनना चाहता था. वह झाबुआ से कुछ किताबें खरीदने पिता के पास भोपाल आया. पिता पर आर्थिक बोझ ना पड़े, इसके लिए वो 13 दिसंबर को चैंबर के काम के लिए चला गया. वीडियो में रोते बिलखते पिता शैतान सिंह सिर्फ इतना कह पाए काम कर रहे थे. इस कंपनी में खाना खाकर सुपरवाइजर उसे लेकर गया.

देखें इस घटना का वीडियो…

जिम्मेदार अधिकारियों नहीं दिया कोई जवाब
हालांकि इस मामले में अभी तक भोपाल नगर निगम (Bhopal Municipal Corporation) का कोई बयान सामने नहीं आया है. संबंधित अधिकारी इस घटना में कोई भी जवाब देने के साथ अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं.

 

मंजीत नौटियाल प्रधानमंत्री से बोले, ये लाशें देख‍िए…
भीम आर्मी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष मंजीत सिंह नौटियाल ने इस घटना पर नाराजगी जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किए हैं. उन्‍होंने ट्विटर पर लिखा, पहले गटर में मारना दूसरी तरफ साथ में खाना. मोदी जी हमारे साथ खाना खाने से अच्छा आप हमारे सफाई कर्मचारियों को गटर में मरने से बचा लीजिये, ये काफी हैं. मध्यप्रदेश के भोपाल में सेफ्टी गियर्स के ना होने के चलते गटर में उतरने वाले 2 कर्मचारियों की मौत हो गई. यह लाशें @narendramodi देखो.

(Manual Scavenging) 

सफाई कर्मचारियों के हकों के लिए अदालत जाने वाले वकील अमित साहनी ने जताई नाराजगी
भोपाल में हुई इस घटना को लेकर वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने रोष जाहिर किया है. उन्‍होंने कहा कि इस धरती पर मैनुअल स्‍केवेजिंग से बड़ा मानवाधिकार का कोई उल्‍लंघन नहीं. भारत में जब मैला ढोने की प्रथा को अमानवीय करार देकर बंद किया गया, तो वो एक सराहनीय कदम था. इसके बाद भी दूरदराज के क्षेत्रों में यह प्रथा आज भी जारी है. किसी इंसान का मल में उतरकर मल की सफाई करने के इस काम के ज्‍यादा अमानवीय और मानवाधिकार का उल्‍लंघन करने का कृत्‍य कुछ और नहीं हो सकता. यह प्रथा आज भी भारतीय समाज पर कलंक है, जिसे आजादी के बाद भी खत्‍म नहीं किया जा सका. केंद्र, राज्‍य सरकारें और उनके संबंधित प्राधिकरण आज भी सफाई कर्मचारियों के हितों को लेकर आंखें मूंदे हुए हैं और कानूनी प्रावधानों के बावजूद बिना सुरक्षा और अन्‍य उपकरणों के सफाई कर्मचारियों को सीवर, नालों, गटर आदि में सफाई करने के लिए उतारा जाता है, जिससे दम घुटने और अन्‍य कारणों से उनकी मौत तक हो जाती है.

बता दें कि एडवोकेट अमित साहनी ने सीवर और सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई करने के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013 का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने की मांग को लेकर दिल्‍ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उन्‍होंने हाईकोर्ट में दायर आवेदन में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले (Ramdas Athawale) के राज्यसभा में दिए उस बयान का जिक्र किया गया था कि पिछले पांच साल में ‘‘मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) के कारण किसी की भी मौत नहीं हुई.’’ एप्‍लीकेशन में दावा किया गया है कि केंद्रीय राज्यमंत्री द्वारा संसद के ऊपरी सदन में दिया गया बयान ‘‘न केवल झूठा और गुमराह करने वाला है बल्कि यह हाथ से मैला ढोने के कारण जान गंवाने वाले लोगों, उनके परिवारों और अब भी यह काम कर रहे लोगों के प्रति असंवेदनशीलता और उदासीनता को दिखाता है.’’ आवेदन में आगे कहा गया है कि संबंधित मंत्रालय ने इस साल फरवरी में कहा था कि “पिछले पांच वर्षों के दौरान मैनुअल स्कैवेंजर्स के कारण 340 मौतें हुई हैं” जो उच्च सदन में मंत्री द्वारा दिए गए जवाब के विपरीत है.

हाईकोर्ट में (5 अगस्‍त 2021) को मामले की सुनवाई थी. हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मामले की सुनवाई करते हुए एप्‍लीकेशन में उठाई गई मांग को स्‍वीकार कर लिया और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को मामले में पार्टी बनाने के आदेश दिए. साथ ही अदालत ने इस एप्‍लीकेशन पर भारत सरकार को 13 सितंबर 2021 तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा था. हालांकि अगली सुनवाई में अदालत में सरकार की तरफ से जवाब दायर अपना पल्‍ला झाड़ लिया गया.

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