नई दिल्ली/काठमांडू : एक दलित परिवार (Dalit Family) में लड़की के रूप में जन्मी सीता परियार (Sita Pariyar) के लिए जीवन जन्म से ही बेहद संघर्ष भरा रहा. जातिवाद के सामाजिक संकट (Social Crisis of Casteism) का सामना करते हुए इससे लड़ने की दिशा में आज वह काम करने के लिए दृढ़ है. 44 साल की सीता परियार एक सिविल सर्वेंट हैं, जोकि नेपाल की पहली दलित मुख्य जिला अधिकारी (Nepal First Dalit woman CDO Sita Pariyar) बनी हैं. नेपाल में दलित (Dalits in Nepal) लंबे समय से सरकार के अंगों से दूर रहे हैं, विशेषकर सिविल सेवाओं में केवल कुछ ही हैं. नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (Nepal National Human Rights Commission) की एक रिपोर्ट भी दर्शाती है कि सरकारी तंत्र में दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व न्यूनतम है. अपना नया कार्यभार संभालते हुए सीता ने कहा है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए वह यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करेंगी कि किसी को भी उसकी जाति के कारण भेदभाव का सामना न करना पड़े.
दरअसल, बीते गुरुवार को 44 वर्षीय सीता परियार नेपाल की पहली दलित महिला मुख्य जिला अधिकारी (Nepal First Dalit woman CDO Sita Pariyar) बनीं. नेपाल के कास्की जिले के भोरले में (Nepal’s Bhorle of Kaski district) अपने माता-पिता की पांचवीं संतान के रूप में जन्मी सीता ने अपने शुरुआती दिनों से ही भेदभाव का अनुभव करना शुरू कर दिया था. वह अक्सर सोचती थी कि दूसरों द्वारा उनके साथ अलग और नीच तरीके से क्यों व्यवहार किया जा रहा है? दलित परिवार में लड़की के रूप में जन्मी सीता परियार के लिए समाज का व्यवहार हमेशा से दोहरा था.
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एक ऐसे समाज में जहां जाति आधारित भेदभाव अभी भी व्याप्त है और लड़कियां और महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं, सीता के साथ सबसे अच्छी बात यह हुई कि उनके माता-पिता ने उन्हें स्कूल भेजने का फैसला किया. जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उन्होंने महसूस किया कि उनकी जाति के कारण उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया. वह कहती हैं कि “चीजें आसान नहीं थीं. हमें पानी के नलों को छूने की अनुमति नहीं थी. विवाह समारोह और मंदिर हमारे लिए नहीं थे. हम जो कुछ भी छूते थे, लोग खाते-पीते नहीं थे.” सीता ने अपने साथ हुए भेदभाव के बारे में कहा. “यह सिर्फ मेरे बारे में नहीं है. हमारे देश में हर दलित सदस्य अपमान के इसी अनुभव से गुजरता है.”
लेकिन नेपाल की पहली महिला सीडीओ सीता परियर ने इन हालातों से हार मानने से इनकार कर दिया. वह कहती हैं कि “मैंने बाधाओं को दूर करने का फैसला किया. शायद मैंने जिस भेदभाव का सामना किया, उसने मुझे कुछ हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया, ताकि मैं वापस लड़ सकूं और समाज से इस बुराई को खत्म करने की दिशा में काम कर सकूं. उसके लिए मुझे पढ़ाई करने की आवश्यकता थी. मुझे एक विश्वविद्यालय जाना था.”
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एक रिपोर्ट के अनुसार, सीता ने अपनी प्राथमिक शिक्षा एक स्कूल से पूरी की, जिसका नाम भी उनके गांव में सीता प्राइमरी स्कूल था. कास्की जिले के चंद्र प्रभु हायर सेकेंडरी स्कूल रूपा ग्रामीण नगर पालिका -6 (Chandra Prabhu Higher Secondary School Rupa Rural Municipality-6 of Kaski district) में अपनी माध्यमिक शिक्षा के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए काठमांडू (Kathmandu) आ गईं. यहां उन्होंने त्रि-चंद्र कॉलेज (Tri Chandra College) से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की. उनकी हालिया पोस्टिंग भक्तपुर में सहायक मुख्य जिला अधिकारी के पद पर हुई थी.
भक्तपुर की मुख्य जिला अधिकारी रुद्र देवी शर्मा ने कहा “मैंने उनके साथ चार महीने काम किया. यह संयोग ही था कि हम दोनों महिलाएं थीं. सीता प्रतिबद्धता और अखंडता के साथ एक मेहनती अधिकारी हैं. यह मेरे लिए भी गर्व का क्षण है कि मेरे सहयोगी को पदोन्नत किया गया है. वह दलित समुदाय की पहली मुख्य जिला अधिकारी बनी हैं. यह सब उसकी मेहनत की वजह से है.”
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सीता ने 4 सितंबर 2011 को ओपन कैटेगरी से सेक्शन ऑफिसर के रूप में सिविल सर्विस में प्रवेश किया था. उन्होंने 2015 और 2017 में क्रमशः दोलखा और भोजपुर जिलों के लिए स्थानीय विकास अधिकारी के रूप में काम किया. फिर उन्होंने तीन स्थानीय निकायों के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्य किया: चंद्रगिरी नगर पालिका (2018), जनकपुर धाम उप-महानगरीय शहर (2019) और (2020) में कीर्तिपुर नगर पालिका Chandragiri Municipality (2018), Janakpur Dham Sub-Metropolitan City (2019) and Kirtipur Municipality in (2020).
सीता के 52 वर्षीय भाई श्याम ने साझा किया कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनकी बहन ने वह हासिल किया है जो उनके समुदाय की किसी महिला ने नहीं किया है. सिलाई का काम करने वाले उनके भाई ने कहा कि “हमारे माता-पिता नहीं रहे. अगर वे जीवित होते, तो उन्हें निश्चित रूप से उस पर इतना गर्व होता. सभी बाधाओं के बावजूद मेरे माता-पिता ने उसे स्कूल और कॉलेज भेजने का फैसला किया. मेरे पिता को उसे शिक्षित करने की बहुत इच्छा थी.”
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उल्लेखनीय है कि नेपाल में दलित (Dalits in Nepal) लंबे समय से सरकार के पदों से दूर हैं. सिविल सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व ना के बराबर ही है. नेपाल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (Nepal National Human Rights Commission) की पिछले साल की रिपोर्ट के मुताबिक, सिविल सेवाओं में कुल 88,578 लोगों में से केवल 1,971 दलित समुदाय (Nepal Dalit Community in Civil Services) से हैं, जोकि 0.2 प्रतिशत है. रिपोर्ट से पता चलता है कि नेपाल पुलिस में दलित समुदाय (Dalit community in Nepal Police) की उपस्थिति 9.45 प्रतिशत, नेपाल सेना में 8.14 प्रतिशत और न्यायिक क्षेत्र में सिर्फ 1 प्रतिशत है.
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जाति-आधारित भेदभाव और हाशिए पर जाने (caste-based discrimination and marginalisation) का अध्ययन करने वाले एक स्वतंत्र थिंक टैंक समता फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष प्रदीप परियार (Pradip Pariyar, Executive chair of Samata Foundation) ने सीता की नियुक्ति को मुख्य जिला अधिकारी के रूप में पूरे दलित समुदाय (Dalit Community) के लिए एक सकारात्मक और गर्व का क्षण बताया और जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में मील का पत्थर बताया. प्रदीप कहते हैं कि “अगर हम गंभीर रूप से देखें, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इसे 21वीं सदी में मना रहे हैं. यह नेपाल और हम नेपालियों की कठोर वास्तविकता को भी दर्शाता है कि कैसे हमारे समाज को अभी भी बहुत अधिक परिवर्तन की आवश्यकता है.”
नया कार्यभार संभालने के वक्त सीता परियार (Nepal First Dalit woman CDO Sita Pariyar) ने कहा कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए वह यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करेगी कि किसी को भी उनकी जाति के कारण भेदभाव का सामना न करना पड़े. यह पूछे जाने पर कि क्या विभिन्न कार्यालयों में सेवा करते समय उन्हें कभी भेदभाव का सामना करना पड़ा? उन्होंने कहा कि “उनके सहकर्मी और सहकर्मी हमेशा उनके साथ अच्छे रहे हैं. लेकिन तथ्य यह है कि जातिगत भेदभाव एक बड़ी समस्या है और यह हर जगह व्याप्त है.” उन्होंने याद किया कि जब उन्हें भोजपुर में स्थानीय विकास अधिकारी नियुक्त किया गया था तो लोग उन्हें अविश्वास की नजर से देखते थे.
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