Dr. BR Ambedkar Efforts on Women Upliftment : वैदिक, बुद्ध एंव कौटिल्यकालीन अध्ययन कर डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) ने पाया कि तीनों ही काल में राजनीति को छोड़ दें तो बौद्धिक एंव समाजिक क्षेत्र में निःसंदेह ही स्त्री बेहतर स्थिति में थी. किंतु कालातंर में मनु के आगमन से उसकी स्थिति दयनीय होती चली गयी, जिसे लेकर डॉ. बीआर आंबेडकर बेहद ही चिंतित थे. आंबेडकर ने धार्मिक अंधविश्वास और धर्मशास्त्रों पर आधारित भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा का गहनता से वैज्ञानिक विश्लेषण कर तत्कालीन समय में चल रहे समाज सुधार आंदोलन से आगे बढ़कर स्त्रियों को अधिकार वापस दिलाने हेतु ठोस प्रयास किये. वे स्त्रियों के प्रति प्रति मनु के संकुचित विचारों को प्रकाश में लेकर आए और स्पष्ट किया कि मनुस्मृति (Manusmriti) सामाजिक-आर्थिक असमानता पर आधारित चातुर्यवर्ण के सिद्धांत को प्रतिपादित करने के साथ-साथ पितृसत्तात्मक ढांचे को भी पुख्ता करती है. इसलिए इसे ध्वस्त करने का आवाह्न करते हुए उन्होंने नारी समाज को सम्मान से जीने के लिए प्रेरित किया.
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आंबेडकर ने रीडल ऑफ वूमेन, नारी एवं प्रतिक्रांति, हिंदू नारी का उत्थान एवं पतन (Riedel of Women, Woman and Counter Revolution, Rise and Fall of Hindu Woman) जैसे लेखों के माध्यम से दिखाया कि किस तरह हिन्दू ब्राह्मणवादी व्यवस्था एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों ने कृत्रिम तौर पर लिंग एंव उसके भेद का निर्धारण कर महिला को पारंपरिक व्यवहार अपनाने को बाध्य किया. अर्थात् उन्हें घर की इज्जत, धैर्यधारिणी तथा धरती की उपमा से सुशोधित कर उन्हें निष्क्रिय एंव दब्बू बनाने का प्रयास किया. यहां आंबेडकर सीमोन दी बोअर के कथन ‘औरत पैदा नहीं होती, अपितु बना दी जाती है’ (Simone de Beauvoir said, One is not born, but rather becomes, a woman) के नज़दीक आ जाते हैं. एक शोधकर्त्ता की भांति उन्होंने धर्म में स्त्री के स्थान का गूढ़ता से अध्ययन कर इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया कि आखिर मनु ने स्त्री का पदानवत क्यों किया? (Why did Manusmriti demote woman?)
आंबेडकर ने तर्क दिया कि बौद्ध कालीन मुख्यतः दो वर्ग (स्त्री एंव शूद्र) बुद्ध के अनुयायी बन रहे थे, जिससे ब्राह्मण धर्म की नींव डगमगाने लगी थी. अतः बौद्ध धर्म की निरंतर फैलती जा रही शाखाओं को रोकने के लिए मनु ने स्त्रियों की स्वंतत्रता पर निशाना साधते हुए उन्हें इससे वंचित कर उन पर इतनी अयोग्ताएं थोप दी कि वे पूर्ण रुप से हमेशा के लिए पंगु हो गयी. मनु इतने पर ही नहीं थमे. बौद्ध धर्म को पाखंडी संप्रदाय कऱार देते हुए इसकी शरण में जाने वाली, गर्भपात, सुरापान तथा प्रतिघात करने वाली महिलाओं को पिंडोदक क्रिया से भी वंचित कर दिया. आंबेडकर यह भी प्रकाश में लेकर आए कि स्त्रियों के प्रति मनुस्मृति में प्रदृत विधायें कोई नयी या मनु के द्वारा इजा़द न होकर, बल्कि ब्राह्मण एंव ब्राह्मणवाद की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं. मनुस्मृति के पूर्व भी ये विधायें समाजिक मान्यताओं के रुप में विद्यमान थी. मनु ने मात्र इन्हें धर्मशास्त्र एंव राज्य विधान का हिस्सा बनाया और शनैं-शनैं ये विधान ही कठोर नियमों में परिवर्तित होकर अकाट्य होते चले गए. इन्हीं परिस्थितियों ने आंबेडकर को स्त्री चिंतन हेतु विवश किया और उन्होंने नारी के उत्थान (Dr. BR Ambedkar Efforts on Women Upliftment) के लिए शिक्षा, विवाह, परिवार नियोजन, प्रसूति अवकाश एंव हिंदू कोड बिल आदि क्षेत्रों में अथक प्रयास किए.
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Dr. BR Ambedkar Efforts on Women Upliftment
शिक्षाः आंबेडकर को आभास था कि शिक्षा ही वह ताकत है जो सभी बेड़ियों को काट सकती है. किसी भी देश अथवा समुदाय की वास्तविक प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि उनके सभी नागरिक शिक्षित हो. नारी मुक्ति के वाहक डॉ. आंबेडकर ने स्वतंत्रता, समानता तथा स्वाभिमान से जीवन जीने की शिक्षा देते हुए दो मूल मंत्र दिए- प्रथम, शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो तथा द्वितीय अत्त दीपो भव यानि अपना दीपक स्वयं बनो.
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उन्होंने प्रश्न उठाया कि ज्ञान और विद्या पर केवल पुरुषों का एकाधिकार क्यों? जबकि घर में एक पुरुष पढ़ता है और यदि घर में स्त्री पढ़ती है तो पूरा परिवार पढ़ता है. 4 अगस्त, 1913 में न्यूयार्क में अध्ययन के दौरान आंबेडकर ने कहा था हमें कर्म सिद्धांत त्याग देना चाहिए. यह गलत है कि माँ-बाप बच्चों को जन्म देते हैं, कर्म नहीं देते. माँ-बाप बच्चों के जीवन को उचित मोड़ दे सकते हैं, यह बात अपने मन पर अंकित कर यदि हम लोग अपने लड़कों के साथ-साथ लड़कियों को भी शिक्षित करें तो हमारे समाज की उन्नति तीव्र होगी. इसलिए नज़दीकी रिश्तेदारों में यह विचार तेजी से फैलाना चाहिए. शिक्षित होकर ही महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति सशक्त होंगी (Women will be empowered towards rights by being educated). उनका मानना था कि शिक्षा ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था से मुक्ति प्राप्त करने का अहम् साधन है. मुक्ति से संबधित आंबेडकर की यह विचारधारा पूर्ण रुप से पश्चिम से ग्रहण नहीं की गई थी, जैसा की कहा जाता है, वरन पश्चिमी (प्रबोधन दर्शन) एंव स्वदेशीय (बुद्ध, कबीर तथा फूले) स्रोतों के अतिरिक्त उनके स्वयं के राजनीतिक तथा संघर्ष पर आधारित थी.
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आंबेडकर के अनुसार नारी राष्ट्र निर्मात्री है (Woman is the builder of nation, Dr. BR Ambedkar ). राष्ट्र का हर नागरिक उसकी गोद में पलता है. नारी को जागृत किये बिना राष्ट्र का विकास असंभव है. इसलिए नारी को शिक्षित होकर राष्ट्रीय उन्नति में सहयोग करना चाहिए. (Women should be educated and cooperate in national progress says Dr. BR Ambedkar)
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